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त्योहारों पर हिंदी शायरी -Festivals Shayari in Hindi

Festivals Shayari in Hindi

हम हैं छोटे-छोटे बच्चे,

त्यौहार हमें लगते हैं अच्छे।

स्कूल में पड़ जाते हैं अवकाश,

दिन होते हैं वो कितने खास।।

पढ़ने की कोई चिंता नहीं,

आराम करें अब हमारे बस्ते।

हम हैं छोटे-छोटे बच्चे ,

त्योहार हमें लगते हैं अच्छे।।

घर में आते हैं मेहमान,

बनते तब नए-नए पकवान ।

सारे मिलकर हम सब बच्चे,

नाचे गाए और है हंसते।।

लोग कहते हम रुप प्रभु के,

हमारे अंदर नहीं है शैतान।

झूठे नहीं हम है सच्चे,

हम हैं छोटे-छोटे बच्चे।।

त्योहार जब-जब आते हैं,

खुशियां संग में लाते हैं ।

छोड़ अपनी सब बुराई ,

अच्छी आदत हम अपनाते हैं ।।

दिवाली जब-जब आती है,

त्योहारों को संग में लाती है।

रोशन करना है जग में नाम,

दीप जला हमें बताती है।।

खिलखिलाते छोटे बच्चे,

त्योहार हमें लगते हैं अच्छे।

गले मिले हम छोटे बच्चे,

त्योहार हमें लगते हैं अच्छे।।

यहाँ 10 त्योहारों के लिए हिंदी शायरी प्रस्तुत है:

  1. दिवाली शायरी:

“रोशनी का त्योहार आया है,

खुशियों का सन्देश लाया है।

दीप जलाओ, दिल से दीवाली मनाओ,

हर ओर उजाला फैलाओ।”

  1. होली शायरी:

“रंगों का त्योहार आया, खुशियों का सन्देश लाया।

चलों मिलकर रंगों में खो जाएं,

प्यार के रंग से होली मनाएं।”

  1. रक्षाबंधन शायरी:

“रिश्तों का यह बंधन प्यारा,

भाई-बहन का साथ है न्यारा।

रक्षाबंधन के इस शुभ दिन पर,

दिल से भेजें प्यार का इशारा।”

  1. मकर संक्रांति शायरी:

“तिल-गुड़ की मिठास हो,

उमंगों का एहसास हो।

मकर संक्रांति का दिन हो खास,

खुशियों से भर जाए हर आस।”

  1. ईद शायरी:

“ईद का दिन आया है,

खुशियों का पैगाम लाया है।

मिलकर गले हम सब मनाएं,

दुआओं से दिलों को सजाएं।”

  1. गणेश चतुर्थी शायरी:

“गणपति बप्पा मोरिया,

आएं सुख, समृद्धि का रास्ता दिखाएं।

हर मनोकामना पूरी करें,

सदा हमें अपना आशीर्वाद दें।”

  1. जन्माष्टमी शायरी:

“कृष्णा के नाम से दिल को सजा लो,

प्यार के रंग में डूब जाओ।

माखन चुराने वाले नंदलाल,

हर दिल को खुशियों से भर जाएं।”

  1. नवरात्रि शायरी:

“माँ दुर्गा की आराधना में,

मन को शांति मिले।

नवरात्रि के इस शुभ अवसर पर,

सफलता का आशीर्वाद मिले।”

  1. लोहड़ी शायरी:

“लोहड़ी की अग्नि में सब दुख जलाएं,

खुशियों के गीत हम मिलकर गाएं।

फसल कटाई का यह पर्व है महान,

संग परिवार के मनाएं लोहड़ी का त्यौहार।”

  1. बसंत पंचमी शायरी:

“पीली सरसों का रंग लाए खुशी,

माँ सरस्वती का आशीर्वाद मिले सभी।

ज्ञान और संगीत से मन को सजाएं,

बसंत पंचमी का त्यौहार हम सब मनाएं।”

ये शायरियाँ आपके त्योहारों को और भी खास बना देंगी!

हाथ आ कर लगा गया कोई
मेरा छप्पर उठा गया कोई

लग गया इक मशीन में मैं भी
शहर में ले के आ गया कोई

मैं खड़ा था कि पीठ पर मेरी
इश्तिहार इक लगा गया कोई

ये सदी धूप को तरसती है
जैसे सूरज को खा गया कोई

हाथ आ कर लगा गया कोई
मेरा छप्पर उठा गया कोई

लग गया इक मशीन में मैं भी
शहर में ले के आ गया कोई

मैं खड़ा था कि पीठ पर मेरी
इश्तिहार इक लगा गया कोई

ये सदी धूप को तरसती है
जैसे सूरज को खा गया कोई

ऐसी महँगाई है कि चेहरा भी
बेच के अपना खा गया कोई

अब वो अरमान हैं न वो सपने
सब कबूतर उड़ा गया कोई

वो गए जब से ऐसा लगता है
छोटा मोटा ख़ुदा गया कोई

मेरा बचपन भी साथ ले आया
गाँव से जब भी आ गया कोई

हाथ आ कर लगा गया कोई
मेरा छप्पर उठा गया कोई

लग गया इक मशीन में मैं भी
शहर में ले के आ गया कोई

मैं खड़ा था कि पीठ पर मेरी
इश्तिहार इक लगा गया कोई

ये सदी धूप को तरसती है
जैसे सूरज को खा गया कोई

ऐसी महँगाई है कि चेहरा भी
बेच के अपना खा गया कोई

अब वो अरमान हैं न वो सपने
सब कबूतर उड़ा गया कोई

वो गए जब से ऐसा लगता है
छोटा मोटा ख़ुदा गया कोई

मेरा बचपन भी साथ ले आया
गाँव से जब भी आ गया कोई

हाथ आ कर लगा गया कोई
मेरा छप्पर उठा गया कोई

लग गया इक मशीन में मैं भी
शहर में ले के आ गया कोई

मैं खड़ा था कि पीठ पर मेरी
इश्तिहार इक लगा गया कोई

ये सदी धूप को तरसती है
जैसे सूरज को खा गया कोई

ऐसी महँगाई है कि चेहरा भी
बेच के अपना खा गया कोई

अब वो अरमान हैं न वो सपने
सब कबूतर उड़ा गया कोई

वो गए जब से ऐसा लगता है
छोटा मोटा ख़ुदा गया कोई

मेरा बचपन भी साथ ले आया
गाँव से जब भी आ गया कोई

हाथ आ कर लगा गया कोई
मेरा छप्पर उठा गया कोई

लग गया इक मशीन में मैं भी
शहर में ले के आ गया कोई

मैं खड़ा था कि पीठ पर मेरी
इश्तिहार इक लगा गया कोई

ये सदी धूप को तरसती है
जैसे सूरज को खा गया कोई

ऐसी महँगाई है कि चेहरा भी
बेच के अपना खा गया कोई

अब वो अरमान हैं न वो सपने
सब कबूतर उड़ा गया कोई

वो गए जब से ऐसा लगता है
छोटा मोटा ख़ुदा गया कोई

मेरा बचपन भी साथ ले आया
गाँव से जब भी आ गया कोई

हाथ आ कर लगा गया कोई
मेरा छप्पर उठा गया कोई

लग गया इक मशीन में मैं भी
शहर में ले के आ गया कोई

मैं खड़ा था कि पीठ पर मेरी
इश्तिहार इक लगा गया कोई

ये सदी धूप को तरसती है
जैसे सूरज को खा गया कोई

ऐसी महँगाई है कि चेहरा भी
बेच के अपना खा गया कोई

अब वो अरमान हैं न वो सपने
सब कबूतर उड़ा गया कोई

वो गए जब से ऐसा लगता है
छोटा मोटा ख़ुदा गया कोई

मेरा बचपन भी साथ ले आया
गाँव से जब भी आ गया कोई

ऐसी महँगाई है कि चेहरा भी
बेच के अपना खा गया कोई

अब वो अरमान हैं न वो सपने
सब कबूतर उड़ा गया कोई

वो गए जब से ऐसा लगता है
छोटा मोटा ख़ुदा गया कोई

मेरा बचपन भी साथ ले आया
गाँव से जब भी आ गया कोई

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